COP Diary | India walks the talk

14/11/2021

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ग्लासगो में हुए संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के पार्टियों के सम्मेलन (COP26) के 26 वें सत्र का समापन हो चुका है। इतने सारे अलग-अलग सोच वाले दिमागों के साथ बातचीत करने का अनुभव समृद्ध करने वाला था। जिन विभिन्न द्विपक्षीय और बहुपक्षीय कार्यक्रमों में हमने भाग लिया, उन्होंने हमें अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाने और जलवायु परिवर्तन के संकट से लड़ने के अपने संकल्प को मजबूत करने में मदद की है।

यह शिखर सम्मेलन भारत के दृष्टिकोण से सफल साबित हुआ क्योंकि हमने विकासशील देशों की चिंताओं और विचारों को स्पष्ट रूप से रखा। भारत ने इस मंच पर जलवायु संकट को लेकर एक रचनात्मक बहस और न्यायसंगत समाधान का मार्ग दिखाने का काम किया है।

हालाँकि, COP26 पर सर्वसम्मति बहुत स्पष्ट नहीं रही। भारत का कहना है कि वर्तमान जलवायु संकट मुख्य रूप से विकसित देशों की अस्थिर जीवन शैली और प्राकृतिक संसाधनों की बेकार खपत के कारण उत्पन्न हुआ है। दुनिया को इस सच्चाई को स्वीकारने की जरूरत है।

माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ‘सीओपी26’ में सतत विकास के लिए एक नया मंत्र देते हुए कहा कि 'LIFE' ही पर्यावरण के लिए अनुकूल लाइफस्टाइल का आधार हो सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि, "दुनिया आज स्वीकार करती है कि जलवायु परिवर्तन में जीवनशैली की प्रमुख भूमिका है। मैं आप सबके सामने एक शब्द का आंदोलन प्रस्तावित करता हूं। यह शब्द ‘LIFE’ है, जिसका अर्थ है पर्यावरण के लिए अनुकूल जीवनशैली। आज जरूरत है कि हम सब एक साथ आएं और जीवन को एक आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाएं।”

जलवायु परिवर्तन जैसी धरती के अस्तित्व से जुड़ी चुनौतियों का सामना करते समय, 'वसुधैव कुटुम्बकम' या 'एक परिवार के रूप में दुनिया' के संदेश को पहले से कहीं अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है। दुनिया के लिए भारत का यही संदेश है कि उसे ऐसी जीवन शैली की ओर बढ़ने की जरूरत है, जो कि अधिकता पर संयम को महत्व देती है।

जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने पर बात करते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व को पंचामृत या पांच सूत्री जलवायु एजेंडा दिया:

  1. भारत की गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता 2030 तक 500 GW तक पहुंच जाएगी।
  2. भारत 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा से पूरा करेगा।
  3. भारत अब से 2030 तक अपने कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी करेगा।
  4. 2030 तक, भारत अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत से कम कर लेगा।
  5. 2070 तक भारत नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कर लेगा।

भारत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के उदाहरण के रूप में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन (सीडीआरआई) और वन सन, वन वर्ल्ड, वन सन ग्रिड जैसी महत्वपूर्ण पहलों में अग्रणी भूमिका निभाई है।

अपनी भूमिकाओं का निर्वाह करते हुए, इस जलवायु शिखर सम्मेलन में भारत ने दुनिया के विकसित देशों से कहा है कि इस निर्णायक दशक में वे ठोस कदम उठाते हुए अपनी प्रतिबद्धताओं को कार्यों में रूपांतरित करें।

यह सच है कि जीवाश्म ईंधन के उपयोग से दुनिया के कुछ हिस्सों ने उच्च स्तर की वृद्धि हासिल करने में सफलता पाई है। लेकिन अभी भी विकसित देशों ने कोयले का उपयोग पूरी तरह से बंद नहीं किया है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) सभी स्रोतों से जीएचजी उत्सर्जन के शमन की बात करता है। यूएनएफसीसीसी किसी विशेष स्रोत पर निर्देशित नहीं है। विकासशील देशों को वैश्विक कार्बन बजट में उनके उचित हिस्से का अधिकार है और वे इस दायरे में जीवाश्म ईंधन के जिम्मेदार उपयोग के हकदार हैं।

पेरिस समझौते में निहित जलवायु के अनुकूल जीवन शैली और जलवायु न्याय जलवायु संकट को हल करने की कुंजी है। हम आज गर्व के साथ कह सकते हैं कि भारत एकमात्र G20 राष्ट्र है जो पेरिस समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह पर है।

अब जब जलवायु संकट को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के बारे में बहुत सारी बातें हुई हैं, तब जलवायु वित्त पर प्रतिबद्धता की कमी परेशानी का सबब है। जलवायु वित्त और जलवायु संकट के शमन प्रयासों के बीच बड़ी बेमेल स्थिति दिखाई देती है। विकासशील देशों को कार्यान्वयन सहायता प्रदान करने का रिकॉर्ड अब तक निराशाजनक रहा है। भारत आशा करता है कि आगे विकासशील देशों को वित्त और प्रौद्योगिकी सहायता की स्थिति में सकारात्मक बदलाव आएगा।

जैसा कि सीओपी-26 में अपनी उपस्थिति समाप्त करते हुए अब मैं स्वदेश लौट रहा हूं, तब यही कहूँगा कि भारत को उम्मीद है कि दुनिया हमारे सामने आने वाले जलवायु संकट की तात्कालिकता के प्रति जागरुक होकर स्वतः यह सुनिश्चित करेगी कि आने वाली पीढ़ियों के लिए अपने इस ग्रह को बचाना हमारा दायित्व है। मुझे यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि भारत ने जलवायु वित्त से सम्बंधित मुद्दों के संदर्भ में कुछ उल्लेखनीय परिणाम हासिल किए, जिसमें COP26 की वार्ता के अंतर्गत नए सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य पर एक कार्यक्रम, विकासशील देशों के लिए बेहतर पारदर्शिता ढांचे के लिए समर्थन, अनुच्छेद-6 नियम पुस्तिका, अनुकूलन, सामान्य समय सीमा आदि बातें शामिल हैं।