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आज ग्लासगो में सीओपी-26 की शुरुआत हो रही है, जिसमें पूरा विश्व जगत जलवायु परिवर्तन से उपजने वाले संभावित संकट का समाधान खोजने के लिए एक साथ आ रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने वैश्विक पटल पर सतत विकास के साथ आगे बढ़ने का एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। केवल प्रधानमंत्री के रूप में ही नहीं, बल्कि गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में भी नरेंद्र मोदी आजादी के बाद देश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन के विषय पर ध्यान देते हुए अपनी सरकार में एक जलवायु परिवर्तन विभाग बनाया। मोदी जी ने ऐसे समय में इस मुद्दे पर ध्यान दिया, जब विश्व में बहुत कम नेता इसके बारे में बात कर रहे थे।
जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए नरेंद्र मोदी जी का समर्पण उनके कार्यों और सकारात्मक परिवर्तन के लिए किए जाने वाले प्रयासों में दिखता है। यह उन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण विषय की तरह है जो यह समझना चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन से लड़ाई को कैसे बढ़ाया जा सकता है। एकबार पश्चिमी भारत के एक छोटे-से गाँव में मोदी जी का ठहरना हुआ था, जहां उन्हें प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करने वाली जीवनशैली का अनुभव हुआ। इस अनुभव ने उन्हें टिकाऊ पर्यावरण के उस दर्शन के प्रति आकर्षित किया, जिसका मूल भारतीय लोकाचार में निहित है। वेदों में धरती को माता के रूप में वर्णित करते हुए कहा गया है – ‘माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या’ अर्थात् पृथ्वी हमारी माता है और हम उसके बच्चे हैं। पर्यावरण संरक्षण का यह मॉडल मोदी जी के शासन में पहली बार गुजरात में लागू किया गया और अब देश में भी इसे आगे बढ़ाया जा रहा है।
मोदी जी का मानना है कि प्रकृति के प्रति सम्मान का भाव भारतीय परम्पराओं के मूल में है। इस विषय में वे अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त को उद्धृत करते हैं, "यस्यां समुद्री उत सिन्धुरापो येस्यमन्नं कृष्ट्यः संभूवुनः। येस्यामिदं जिवति प्राणदेजत्सा नो भूमिः पूर्वेपेये दधातु ॥3॥" अर्थात् धरती माता को प्रणाम। उसमें समुद्र और नदी के पानी को एक साथ बुना गया है; उसमें निहित है भोजन जो कृषि से प्रकट होता है; उसमें वास्तव में सभी जीवित हैं; वह हमें जीवन प्रदान करे।
मोदी जी अपनी पुस्तक में हमें ऐसा जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं, जो प्रकृति के प्रति सामंजस्यपूर्ण और टिकाऊ हो, क्योंकि यह जीवनशैली हमारे लोकाचार का हिस्सा है। उनका मानना है कि एकबार जब हम यह समझ जाएंगे कि हम प्रकृति के प्रति सद्भाव से युक्त परम्परा के ध्वजवाहक हैं, तो निश्चित ही ये हमारे कार्यों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा।
साथ ही, अपनी पुस्तक में प्रधानमंत्री मोदी ने अर्थव्यवस्था, ऊर्जा और पारिस्थितिकी के अभिसरण की आवश्यकता और जलवायु परिवर्तन से लेकर जलवायु न्याय तक के दृष्टिकोण और दृष्टि को व्यापक बनाने पर जोर दिया है, जिससे सतत विकास के क्रम में गरीबों और आने वाली पीढ़ियों का समुचित ध्यान रखा जा सके। इसके तहत वे स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के सक्रिय प्रचार-प्रसार, नवीकरणीय ऊर्जा के विकास तथा प्राचीन भारतीय ज्ञान में प्रकृति संरक्षण की बातों की तरफ ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। यह पुस्तक जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध सकारात्मक कार्रवाई की दिशा में व्यावहारिक नीति निर्माण से सम्बंधित सभी पहलुओं में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के एकीकरण के सम्बन्ध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि और रणनीति पर प्रकाश डालती है।
सीओपी-26 में भारत का नीतिगत पक्ष, जलवायु न्याय के प्रति प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिबद्धता और प्रकृति के प्रति भारत की आदरपूर्ण दृष्टि में निहित है।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने किस प्रकार स्वयं को 2030 से पहले पेरिस जलवायु सम्मेलन की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए तैयार किया है, यह समझने के लिए ‘The Climate Climb: India’s Strategy, Actions and Achievements’ अनिवार्य रूप से पढ़ी जानी चाहिए।
यह पुस्तक भारत विश्व को इस धरती के संरक्षण और मानवता के सन्तुलित विकास की एक मार्गदर्शिका की तरह देखी जा सकती है। यह सच है कि जो हमें विरासत में मिला है, उसे हम अपनी भावी पीढ़ियों को देने के लिए भी बचाकर रखें।